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अमर रहें पतिदेव जगत में

गीत(16/14)
अमर रहें पतिदेव जगत में,
निर्जल पावन व्रत बोले।
शिवा अमर हैं गौरी-पति भी,
जग कहता जिनको भोले।।

व्रत-तप-त्याग रुचिर फल देते,
यदि पावन मन से होते।
त्यागी-तपी-व्रती इस जग में,
प्रभु की कृपा नहीं खोते।
कृपा-दृष्टि हो प्रभु की जिनपे,
पड़ें नहीं उनपे ओले।।
       निर्जल पावन व्रत बोले।।

निरख चाँद को जब चलनी में,
पत्नी पति-दर्शन पाती।
हो संतुष्ट मना वह मुदिता,
तब व्रत तजकर कुछ खाती।
भौतिक सुख-आकर्षण भी लख,
कभी न मन उसका डोले।।
       निर्जल पावन व्रत बोले।।

पावक-पवन-वायु-जल-सुर सब,
व्रत से सदा पिघल जाते।
व्रती अन्न-जल तज कर ही तो,
अपने इच्छित फल पाते।
नहीं तोड़ती पत्नी व्रत निज,
खा मन चाहे हिचकोले।।
       निर्जल पावन व्रत बोले।।

अद्भुत है भारत की नारी,
त्याग सदा करती रहती।
निज सुहाग रक्षार्थ सदा वह,
कठिन-कठिन भी व्रत रखती।
सावित्री-सीता-व्रत रख कर,
भरती इच्छित फल-झोले।।
       निर्जल पावन व्रत बोले।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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1 Comments

Renu

18-Jan-2023 10:17 AM

👍👍🌺

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